पुष्प की अभिलाषा (फूल की चाह) | माखनलाल चतुर्वेदी | PUSHP KI ABHILASHA | MAKHANLAL CHATURVEDI
22660
पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी
आशय : भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए हर भारतीय तन-मन-धन ले तैयार था। कवि ने त्याग और बलिदान की इस भावना को फूल बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस कविता में भारत बगीचा है तो हर भारतीय फूल है। इस कविता में भारतवासियों का देशप्रेम सुंदर रूप से प्रकट हुआ है।
चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ।
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक।
1 view
522
142
1 year ago 00:03:51 0
पुष्प की अभिलाषा (फूल की चाह) | माखनलाल चतुर्वेदी | PUSHP KI ABHILASHA | MAKHANLAL CHATURVEDI